पिछली 2 सदियों में इंसान ने वो तरक्की की है जो उसने कई हजार सालो में नहीं की | हम इन्सानो ने अपनी सुख सुविधा के लिए सुई से लेकर हवाईजहाज तक ना जाने कितनी ही चीजों का अविष्कार कर लिया | लेकिन इस विकास की दौड़ में हमने कुछ ऐसी चीजों का भी ईजाद कर लिया जो की हमारी सेहत के लिए बेहद ही हानिकारक है| इन चीजों को बनाने में बहुत तरह के केमिकल का यूज़ किया जाता है जो की हमारी सेहत के लिए बहुत ही नुकसानदायक होते है | लेकिन जानकारी के आभाव में इन चीजों का हम लगातार यूज़ करते जाते है और ये चीजे धीरे धीरे हमारे शरीर में पहुंचकर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का कारन बनती है | जिसका पता हमे इस बीमारी के गंभीर होने के बाद ही चलता है |
80 प्रतिशत बीमारियों की वजह है इंसान द्वारा बनाई गयी केमिकल युक्त चीजें
आपको जानकर हैरानी होगी की पिछले 10 सालों में किडनी और फेफड़ो की बीमारिया , लिवर की खराबी और कैंसर जैसी गंभीर बीमारिया फ़ैलने के पीछे 80 % से ज्यादा इंसानो से निर्मित इन्ही केमिकल युक्त चीजों का ही हाथ है | हमारे आसपास केमिकल से बनी हुई चीजे इतनी ज्यादा फ़ैल चुकी है की जाने अनजाने में हम इनका इस्तेमाल कर ही लेते है | हालाँकि इनसे होने वाले बुरे परिणाम हमे इनके केवल 1 बार के इस्तेमाल से नजर नहीं आते | लेकिन समय के साथ साथ यह धीरे धीरे हमारे दिमाग को अंदर से प्रभावित कर रहे होते है | जिससे की यह एक दिन किसी बड़ी बीमारी के रूप में हमारी जिंदगी से उम्र भर के लिए जुड़ जाते है |
आइये जानते है 3 ऐसी साधारण लेकिन खतरनाक चीजों के बारे में जिनमें केमिकल की मात्रा बहुत अधिक होती है और आजकल जिनका इस्तेमाल दुगुनी रफ़्तार से बढ़ता चला जा रहा है |
स्टायरोफोम
स्टायरोफोम से बने कप और डिस्पोजेबल प्लेटो का इस्तेमाल आजकल बढ़ता जा रहा है | ज्यादतर इन्हे चाय कॉफी और कोल्ड ड्रिंक जैसी चीजे पिने के लिए उपयोग में लिया जाता है | स्टायरोफोम पोलीस्टाइरीन प्लास्टिक द्वारा निर्मित होता है | यह प्लास्टिक की गैस से भरी हुई बहुत छोटी छोटी बॉल से मिलकर बनता है | यह एक तरह का थर्माकोल ही है | लेकिन यह साधारण थर्माकोल से ज्यादा सख्त और मजबूत होता है |
जिन गैसों के जरिये इन्हे हल्का बनाया जाता है और इसकी पूरी निर्माण प्रक्रिया में जिन केमिकल्स का इस्तेमाल होता है वह हमारी हेल्थ के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकते है | इसमें पाए जाने वाले केमिकलो का जब जानवरो पर परिक्षण किया गया तो उसमे कुछ ऐसे तत्व पाए गए जो हमारे शरीर में कैंसर तक पैदा कर सकते है |
गर्म पेय पदार्थ डालकर सेवन करने से होता है कैंसर
स्टायरोफोम से बनी चीजों में जब गर्म लिक्विड डाला जाता है तो इसमें मौजूद पॉलिस्ट्रीन मेटेरियल चाय और कॉफी में घुलने लगता है | इसलिए कई देशो में स्टायरोफोम पर पूरी तरह से बैन लगा दिया गया है | वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार स्टायरोफोम के साथ कैंसर के साथ साथ थाइराइड प्रॉब्लम , आँखों में इन्फेक्शन, कफ थकान, कमजोरी और त्वचा रोग होने की सम्भावना काफी होती अधिक होती है |
कोल्ड ड्रिंक पानी और ठंडी चीजों का स्टायरोफोम से बने बर्तन में सेवन करना इतना बुरा नहीं होता | लेकिन चाय कॉफी और सुप जैसी बहुत गर्म चीजे इसमें डालने पर यह न्यरोटोक्सिक बन जाता है, जो की हमारे दिमाग की नसों को बहुत ज्यादा कमजोर बना सकता है | प्लास्टिक की वजह से इसे रीसायकल करना भी एक बहुत मुश्किल काम है, जो की हमारे साथ साथ हमारे वातावरण के लिए भी हानिकारक है |
अगरबत्ती से होता है कैंसर
हमारे देश में पूजा के दौरान या किसी मांगलिक काम को करते समय अगरबत्ती का इस्तेमाल होता ही है | और जो लोग भगवन की रोज रोज पूजा नहीं कर सकते वह लोग सिर्फ दिया और अगरबत्ती लगाकर भगवन के प्रति अपनी शृद्धा को जाहिर करते है | अगरबत्ती के इस्तेमाल भारत के अलावा चाइना जापान अरब ,म्यांमार और वियतनाम जैसी कई एशियाई कंट्री में किया जाता है |
क्या आप जानते है की अगरबत्ती से निकलने वाला धुआँ सिगरेट के धुंए से ज्यादा खतरनाक होता है | इटली में की गयी एक सर्च के मुताबिक अगरबत्ती जलाने से निकलने वाले धुए से पॉलि एरोमेटिक हाइड्रो कार्बन, और कार्बन मोनोऑक्सइड जैसी खतरनाक जैसे निकलती है | जो की फेफड़ो का कैंसर तक पैदा कर सकती है | और चुकी इसे हम घर या ऑफिस के अंदर जलाते है |
धुंए से खतरनाक गैस जाती है शरीर में होता है कैंसर
इससे निकलने वाली खतरनाक गैस हमारी सांसो के जरिये लगातार हमारे शरीर में प्रवेश करती रहती है | जिसका असर हमारे दिमाग और त्वचा पर भी होने लगता है | चाहे अगरबत्ती जलने से खुशबु आती हो लेकिन इसके जलने से घर के अंदर के वातावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है | अगरबत्ती की खुशबु इतनी तेजी से इसलिए फैलती है क्युकी इसमें कैथेलिटम नामक केमिकल पाया जाता है | और बुझने के बाद भी अगरबत्ती में मौजूद केमिकल्स लगभग 5 से 6 घंटे तक घर के अंदर के वातावरण में ही मौजूद होते है |
ऐसे में जिन लोगो को लंग्स से सम्बंधित प्रॉब्लम है, या जो लोग अस्थमा के पेशेंट है | उन लोगो की यह बीमारी और ज्यादा बढ़ सकती है | जो लोग अधिक समय तक अगरबत्ती के धुंए के संपर्क में रहते है, उन्हें समय के साथ साथ स्वांस सम्बन्धी कोई ना कोई प्रॉब्लम होती ही है | अगरबत्ती के धुए का हमारे रेसप्रेस्टिव सिस्टम पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है | और साथ ही यह न्यूरोलॉजिकल और कार्डियोलॉजिकल प्रॉब्लम भी पैदा कर सकता है | सिगरेट के धुंए से डेड गुना ज्यादा हानिकारक होने की वजह से जब इसका धुआँ हमारे नाक के जरिये हमारे शरीर में प्रवेश करता है | तो इससे इक्यू ब्रोंकाइटिस होने का खतरा भी काफी ज्यादा बढ़ जाता है |
हिन्दू धर्म में मनाही ही बांस की अगरबत्ती के जलाने पर
स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने के साथ साथ अगरबत्ती इस्तेमाल करने के पीछे एक धार्मिक पहलु भी है | बहुत सारी कम्पनिया अगरबत्ती बनाने में बांस का इस्तेमाल करती है | और हिन्दू धर्म में बांस को जलाया नहीं जा सकता | क्युकी बांस की लकड़ी को जलाये जाने पर निकलने वाले धुए और आग को देखना हिन्दू धर्म में अशुभ माना गया है | और इसे नाश का प्रतीक कहा जाता है | इसलिए किसी भी हवन और पूजा में कभी भी बांस की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं होता | और यहाँ तक की चिता में भी बांस को जलाया नहीं जाता |
ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष को सबसे बड़े दोषो में से एक बताया गया है | क्युकी इसकी वजह से घर में अशांति फैलती है और जीवन के हर क्षेत्र में असफलता का सामना करना पड़ता है | कई ग्रंथो में ऐसा कहा गया है की बांस को जलाने में पितृ दोष भी होता है | अब सोचिये एक और आप भगवन के सामने अगरबत्ती लगाकर किसी अच्छे फल की कामना कर रहे है और दूसरी तरफ आप घर में गैस के जरिये बीमारिया और नेगेटिविटी बढ़ा रहे है इसलिए अगरबत्ती का इस्तेमाल करने से पहले यह जरूर पता कर ले की वह पूरी तरह ऑर्गेनिक और केमिकल फ्री हो और उसमे बांस की लकड़ी का इस्तेमाल ना किया गया हो |
मॉस्किटो रेपेलेंट के उपयोग से होता है कैंसर
अक्सर लोग मच्छरों को मारने और घर से भगाने के लिए कोइल या रेपलेंट का प्रयोग करते है | लेकिन उन्हें पता नहीं होता की ये कोइल और रपेलेंट को केमिकल से बनाया जाता है | और जब इनको जलाया जाता है तो इनका बहुत ही बुरा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है | इनको जलाने पर इनमे उपयोग किये गए केमिकल धुंए के द्वारा हमारे सांस से होते हुए शरीर में चले जाते है, जिससे की आपको बेचैनी, सर में दर्द और भारीपन महसूस होता है |
अक्सर हम इन कोइल और रेपलेंट को हमारे कमरों में जलाते है, जिनसे धुआँ बाहर भी नहीं जा पता और हम उस धुआँ को सांस के जरिये लेते रहते है | लम्बे समय तक इस केमिकल के धुंए को स्वास के जरिये लेने से फेफड़ो में खराबी , कफ और अस्थमा जैसी गंभीर बीमारिया होने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है | सबसे अधिक यह केमिकल युक्त धुआँ बच्चो के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है | बच्चो के फेफड़े इस धुंए के दुष्प्रभावो को झेलने में असमर्थ होते है और इसकी वजह से उन्हें एलर्जी और अस्थमा होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है |
हम उम्मीद करते है की आज की यह जानकारी आपके जीवन में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी | आगे भी हम आपके सेहत से जुडी ऐसी ही उपयोगी जानकारी लाते रहेंगे | अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी हो तो इसे लाइक और शेयर करें | अगर आपके कोई सवाल या सुझाव हो तो कमेंट करें, धन्यवाद |