बहुत समय पहले की बात है | एक नगर में ज्योतिष और सामुद्रिक शास्त्र के बहुत ही विद्वान् व्यक्ति रहते थे | यहाँ पर सामुद्रिक शास्त्र से मतलब है की जिसमे ज्योतिष के विद्वान् व्यक्ति के अंगो के निशान देखकर उसका भूत, वर्तमान और भविष्य बता देते है | एक बार उन विद्वान् का किसी काम से नगर के बाहर जाना हुआ | जब वे रस्ते से जा रहे थे, तो वे एकाएक रुक गए, उन्हें रस्ते में एक पदचिन्ह दिखाई दिए | उन पदचिन्हों को देखकर वे उसे बड़े ही गौर से देखने लगे | उन्होंने सोचा की यह पदचिन्ह तो किसी महान चक्रवती सम्राट के ही हो सकते है | अगर मेरा उनसे मिलान हो जाये, तो मैं उन्हें उनके भविष्य के बारे में बताकर अच्छा पुरस्कार प्राप्त कर सकता हूँ |
बड़ा ही खुश होता हुआ वह विद्वान , उन पद्चिनो के निशान के साथ साथ आगे बढ़ने लगा | तभी उसके मन में विचार आया की , भला कोई चक्रवती सम्राट भला नंगे पांव क्यों चलेगा | वह तो रथ में जायेगा और उसके साथ तो बहुत से सैनिक घोड़े ऊंट हाथी सभी तरह का लवाजमा होगा | लेकिन यहाँ तो केवल एक ही व्यक्ति के पैर के निशान है | उसे अब अपने ज्ञान पर संशय होने लगा | उसने सोचा की कहीं उसके द्वारा हासिल किया गया ज्ञान असत्य तो नहीं है | धीरे धीरे उसके मन का संदेह मजबूत होता जा रहा था | उसको बहुत पछतावा हो रहा था की जिस ज्ञान को हासिल करने में उसने अपना सारा जीवन लगा दिया, वह तो बिलकुल असत्य था |
पैरो के निशान का पीछा करते करते वह एक पेड़ के नीचे पहुंच गया।, जहां पर एक बड़े ही फटेहाल में एक व्यक्ति उन्हें बैठा दिखाई दिया, और उसके पास ही एक भिक्षापात्र पड़ा हुआ था | शरीर में तो उसके तेज था, लेकिन उसकी स्थिति देखकर लग रहा था, की वह कोई बहुत ही गरीब व्यक्ति है | अब तो उसे यकीन हो गया था की, उसका ज्ञान बिलकुल व्यर्थ है| और उसका मन कर रहा था की, वह अपनी सभी किताबों को किसी कुँए में फेंक दे |
पेड़ के निचे बैठे उस व्यक्ति ने, उस विद्वान् के चेहरे पर परेशानी के भाव देखकर उससे पूछा, की भाई क्या हुआ तुम इतने परेशान क्यों हो | विद्वान् ने उस व्यक्ति को सारी बाते विस्तार से बता दी| की मुझे ये निशान किसी चक्रवाती सम्राट के लग रहे थे| और इन निशान का पीछा करते हुए मैं इसलिए आया, की मैं उन्हें उनके भविष्य के बारे में बताकर कुछ पुरस्कार प्राप्त कर सकूंगा | लेकिन मेरा ज्ञान व्यर्थ था , क्योंकि मुझे नहीं पता था की ये निशान किसी भिखारी के होंगे |
विद्वान् की बात सुनकर पेड़ के निचे बैठे व्यक्ति मुस्कराने लगे | वे उस विद्वान् से बोले की तुम्हारा ज्ञान व्यर्थ नहीं है, और तुमने पैरों के निशान देखकर सही अनुमान लगाया था | मैं जहां पैदा हुआ था अगर मैं वहां रहता, तो मैं निश्चय ही एक चक्रवती सम्राट होता | लेकिन जब मुझे ज्ञान मिला तो मुझे महसूस हुआ की ये सभी भौतिक मोहमाया तुच्छ है और मेरे जीवन का लक्ष्य आध्यात्मिक ज्ञान बन गया | अपने मन और आत्मा पर जो अज्ञान रूपी कालिख जमा है उसे हटाना ही मेरे जीवन का मूल उद्देश्य बन गया है |
उस फक्कड़ व्यक्ति के ऐसे ज्ञान के वचन को सुनकर विद्वान् बहुत आश्चर्चकित हुआ उसने पूछा की आपके ज्ञान से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ बताइये आप कौन है | तब वे बोले की मेरा जन्म महाराज शुद्दोधन के यहाँ हुआ और मैं उनका पुत्र सिद्धार्थ हूँ | फिर मुझे एक दिन ज्ञान प्राप्त हुआ, और अब लोग मुझे बुद्ध के नाम से जानते है | उसके बाद दोनों में बहुत से विषय को लेकर लम्बी बातचीत हुई | और अपने मन के बहुत से सवालों के जवाब पा लेने के बाद वह विद्वान् बुद्ध का शिष्य बन गया |
दोस्तों यह कहानी हमें सिखाती है की अपने जीवन की सफलता क्या है | यह दुसरो के हिसाब से नहीं बल्कि खुद तय करो, आज के समय में लोग सफलता को पैसे और भौतिक चीजों से मापने लगते है , लेकिन हर एक व्यक्ति के लिए सफलता का मतलब अलग अलग होता है, किसी के लिए पैसा सफलता है तो किसी के ज्ञान हासिल करना सफलता है , किसी के लिए दुसरो की मदद करना सफलता है| और साथ ही इस कहानी से हमें एक और शिक्षा मिलती है की जब हम बिना किसी बात को जाने संदेह करने लगते है, तो सही भी गलत लगने लगता है |